आचरण
आचरण
आचरण बाहर की वस्तु नहीं हैं , आचरण अंदर की प्रेरणा हैं । जो अंदर होगा वही आचरण मे व्यक्त होगा । यदि अंदर क्रोध भरा हैं तो आचरण मे भी क्रोध व्यक्त होगा । यदि अंदर दया भरी हैं तो आचरण मे भी दया व्यक्त होगी । आचरण की शुद्धि के लिए अपने अंदर परिवर्तन बहुत ही जरूरी हैं । जब तक बिना अपने अंदर परिवर्तन किये आचरण शुद्धि का प्रयास करते रहेंगे । सफलता हमे कभी प्राप्त नहीं होगी । अंदर के परिवर्तन के लिए हमे अपने चित की दशा को समझना होगा , हमे अपनी मनोवृतियों के प्रति सजग होना पड़ेगा । हमारा सारा ध्यान बाहर ज्यादा हैं ,हम बहुत बड़ी-बड़ी धार्मिकता की बातें करते हैं । जितना यथाकथित धर्म हम करते हैं उस हिसाब से तो दुनिया स्वर्ग होनी चाहिए । हम सिर्फ बाहरी क्रियाओं को ही धर्म समझते हैं । हम धर्म की बातों को सिर्फ कान से सुनते हैं लेकिन उन्हे मन मे नहीं उतारते । हम मंदिर मे जाकर नमन व पूजा अर्चना करके आपने आपको बहुत बड़ा धर्मात्मा समझ लेते हैं । लेकिन जब तक हमारे आचरण मे शुद्धता न आये किसी भी क्रिया का कोई धार्मिक महत्व नहीं हैं । यदि धर्म हैं तो वह मनुष्य का स्वभाव जो उसके आचरण मे व्यक्त होता हैं । कोई भी क्रिया अपने आप मे धार्मिक नहीं हैं । मगर उस क्रिया के द्वारा हम अपने स्वभाव मे कोई अच्छाई ला पाते हैं ,तो वही क्रिया अति धार्मिक हो जाती हैं ।
विशेष :-
पैसे से आप वस्तुएं खरीद सकते हैं पर लोगो के दिलो को नहीं । लोगो के दिलो मे आप सिर्फ आचरण से ही बस सकते हैं
Athlete Chand Singh Rohilla
आचरण बाहर की वस्तु नहीं हैं , आचरण अंदर की प्रेरणा हैं । जो अंदर होगा वही आचरण मे व्यक्त होगा । यदि अंदर क्रोध भरा हैं तो आचरण मे भी क्रोध व्यक्त होगा । यदि अंदर दया भरी हैं तो आचरण मे भी दया व्यक्त होगी । आचरण की शुद्धि के लिए अपने अंदर परिवर्तन बहुत ही जरूरी हैं । जब तक बिना अपने अंदर परिवर्तन किये आचरण शुद्धि का प्रयास करते रहेंगे । सफलता हमे कभी प्राप्त नहीं होगी । अंदर के परिवर्तन के लिए हमे अपने चित की दशा को समझना होगा , हमे अपनी मनोवृतियों के प्रति सजग होना पड़ेगा । हमारा सारा ध्यान बाहर ज्यादा हैं ,हम बहुत बड़ी-बड़ी धार्मिकता की बातें करते हैं । जितना यथाकथित धर्म हम करते हैं उस हिसाब से तो दुनिया स्वर्ग होनी चाहिए । हम सिर्फ बाहरी क्रियाओं को ही धर्म समझते हैं । हम धर्म की बातों को सिर्फ कान से सुनते हैं लेकिन उन्हे मन मे नहीं उतारते । हम मंदिर मे जाकर नमन व पूजा अर्चना करके आपने आपको बहुत बड़ा धर्मात्मा समझ लेते हैं । लेकिन जब तक हमारे आचरण मे शुद्धता न आये किसी भी क्रिया का कोई धार्मिक महत्व नहीं हैं । यदि धर्म हैं तो वह मनुष्य का स्वभाव जो उसके आचरण मे व्यक्त होता हैं । कोई भी क्रिया अपने आप मे धार्मिक नहीं हैं । मगर उस क्रिया के द्वारा हम अपने स्वभाव मे कोई अच्छाई ला पाते हैं ,तो वही क्रिया अति धार्मिक हो जाती हैं ।
विशेष :-
पैसे से आप वस्तुएं खरीद सकते हैं पर लोगो के दिलो को नहीं । लोगो के दिलो मे आप सिर्फ आचरण से ही बस सकते हैं
Athlete Chand Singh Rohilla
Nice
ReplyDeleteNiceee
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